श्री नागार्जुन
कविवर नागार्जुन का पूरा नाम श्री
वैधनाथ मिश्र ‘यात्री’ है। ये ‘यात्री’ उपनाम से ही अपनी मातृभाषा मैथिली में
लिखते थे। बाद में हिन्दी में लिखने लगे और बाबा नागार्जुन के नाम से प्रसिद्ध
हुए। नागार्जुन एक ऐसे कवि है, जो अपने कृतित्व एवं व्यक्तित्व से हिन्दी साहित्य
के अन्य कवियों से बिलकुल भिन्न हैं। नागार्जुनजी ने आधुनिक प्रगतिवादी,विचारधारा
को अग्र प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
नागार्जुनजी का जन्म बिहार के दरभंगा जिले के तरौनी गांव में सन् 1912 ई.
में हुआ। नागार्जुनजी ने परम्परागत ढंग से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की थी।
इन्होने पाली भाषा एवं भारत दर्शन का साथ-साथ अध्ययन किया था। बचपन में ही बहुत
कठिनाइयों का सामना करना पडता था। नागार्जुन गृहस्थ जीवन जीने के अतिरिक्त साधु-फक्कडों
या रमते-रीम जोगी की तरह घूमते रहते थे। वे बहुत ही संवेदनशील स्वभाव के उग्र एवं
भावुक व्यक्ति थे। वे निरंतर डटकर संघर्षो का सामना करते रहे। वे राजनीति में भी
भाग लेकर आम जनता के कष्टों को दूर करने के अथाग प्रयत्न करते थे। उन्हें राजनीति
से कोई लाभ-प्राप्ति की इच्छा नहीं थी, बल्कि जनहित के लिए वे राजनीति में भाग
लेते रहे।
नागार्जुन कविता के क्षेत्र में प्रगतिशील कवि
रहे हैं। नागार्जुन ने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली,संस्कृत और बंगला में कविताऎ
लिखी हैं। कविता के अतिरिक्त कथा-साहित्य के विकास में भी आपका महत्वपूर्ण योगदान
हैं।
Ø कृतित्व
*कविता-संग्रह:
1.युगधारा
2.सतरंगे
3.पंखोवाली
4.प्यासी पथराई आंखे
5.तालाबकी मछलियां
6.चन्दना
7.खिलाडी
8.विप्लव देखा हमने
9.तुमने कहा था
10.पुरानी जूतियों के कोरस
11.हजार-हजार बांहोवाली
*खंडकाव्य
1.भस्मांकुर
*अनुदित मैथिली कविता-संग्रह
1.चित्रा
2. पत्रहीन नग्न गाछ
*संस्कृत काव्य
1.धर्मलोक
शतकम्
2.संस्कृत के अनूदित ग्रंथ
*उपन्यास
1.रतिनाथ
की चाची
2.बाबा
बदेसर नाथ
3.दु:खमोचन
4.बलचमना
5.वरुण
के बेटे
6.नई
पौध
7.पारो (मैथिली भाषा में)
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