श्री अज्ञेयजी
‘अज्ञेयजी’‘ का पूरा नाम सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्सायन है। उनका जन्म 1911 ई. में
कसया-कुशीनगर, उतरप्रदेश में हुआ था। और निधन 1987 में हुआ। अज्ञेयजी के पिताजी
पंडित हीरानन्द वात्सायन विख्यात पुरातत्ववेता थे। उनका स्थानांतरण भारत के
विभिन्न भागो में समय-समय पर हुआ, जिसके परिणाम ‘अज्ञेय’ का भारत के अनेक स्थानों
तथा व्यक्तियों से परिचय हुआ। संभवत: इसी कारण उनमें यायावरी वृति का भी विकास
हुआ। स्ज्ञेयजी के पिता संस्कारी तथा स्वाभिमानी थे और तत्कालीन स्कूली शिक्षा की
उपयोगिता के बारे में बहुत आश्वस्त नहीं थे, इसी लिए सच्चिदानन्द की प्रारंभिक
शिक्षा घर पर ही हुई। अज्ञेयजी ने संस्कृत पंडित से रघुवंश, रामायण तथा हितोपदेश
पढा, पारसी मौलवी से ‘सादी’ और अमरीकी पादरी से अंग्रेजी का अध्ययन किया।
निराले व्यक्तित्व के रचनाकार अज्ञेय जहिन्दी प्रयोगवादी धारा के प्रवर्तक
एवं ऐसे अकेले कवि हैं, जो हंमेशा विवादो में घिरे रहे। ये विवाद रण्नीति से अधिक
विचार-धारा-गत थे। हिन्दी में शुद्ध साहित्य को प्रतिष्ठा दिलाने में उनका
महत्वपूर्ण हाथ रहा है। उन्होनें तीन सप्तकों का संपादन भी किया है।
*कृतित्व
अज्ञेयजी की
काव्यकृतियां प्रकाशन सन् के साथ ईस प्रकार है-
1. भग्न दूत 1933
2. इत्यलम् 1946
3.चिन्ता 1947
4.हरी घास पर क्षण भर 1949
5.बावरा अहेरी 1948
6.इन्द्रधनु रोंदे हुए 1957
7.आंगन के पार द्रार 1961
8.सुनहले शैवालिक 1964
9.कितनी नावों में कितनी बार 1967
10.क्योंकि में उसे जानता हूं 1968
11.सागर-मुद्रा 1970
12. पहले में सन्नाटा
बुनता हूं 1973
13.महावृक्ष के नीचे 1977
14.नदी की बांक पर छाया 1982
*उपन्यास
1.शेखर : एक जीवन
प्रथम एवं दूसरा भाग
2. नदी के द्रीप 3.अपने अपने अजनबी
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